Vakyapadiyam- वाक्यपदीयम् 📚 | Vakyapadiya PDF Bhartrihari Vakyapadiyam Book & PDF | वाक्यपदीय पीडीएफ़

Vakyapadiya- वाक्यपदीयम् | Vakyapadiya PDF Bhartrihari Vakyapadiyam Book & PDF

वाक्यपदीय संस्कृत व्याकरण परम्परा में दार्शनिक दृष्टि से एक विशिष्ट ग्रंथ है। हम जो लिखते हैं, हम जो बोलते हैं- वह एक-एक शब्द साक्षात् ब्रह्म का स्वरूप है। अर्थात् शब्द ही ब्रह्म है - इस सिद्धान्त की दार्शनिक विवेचना करने वाला ग्रंथ है- वाक्यपदीयम्। 

भर्तृहरि के द्वारा विरचित वाक्यपदीयम् नामक ग्रंथ संस्कृत व्याकरण जगत में अपनी एक अलग पहचान बताता है। आप भी ईदृश महान वाक्यपदीयम् ग्रन्थ को घर बैठे आसानी से पढ सकें- इस मनीषा को ध्यान में रखकर हमने यंहा वाक्यपदीयम् PDF डाउनलोड लिंक दिया है। 

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वाक्यपदीयम् PDF के बारें में (Vakyapadiya PDF)


Vakyapadiyam Book PDF


पुस्तक PDF का नाम-



वाक्यपदीयम् (Vakyapadiyam)


पुस्तक प्रकार-

संस्कृत व्याकरण

लेखक का नाम-

भर्तृहरि

फाइल प्रकार-

PDF



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प्रिय पाठकों, वाक्यपदीय PDF एवं पुस्तक खरीदने का लिंक ऊपर दिया गया है। आइये, अब थोड़ा सा वाक्यपदीय ग्रंथ के बारें में कुछ रोचक चर्चा कर लेते हैं।


वाक्यपदीयम् (Vakyapadiyam)

वाक्यपदीयम् संस्कृत व्याकरण का एक प्रसिद्ध दार्शनिक ग्रंथ है। वाक्यपदीय व्याकरण का ग्रंथ है तथापि इसमें व्याकरण विषय को दार्शनिक दृष्टि से प्रतिपादित किया गया है। यही कारण है कि संस्कृत जगत में वाक्यपदीयम् का नाम बड़े सम्मान व आदर के साथ लिया जाता है। 

वाक्यपदीयम् के रचयिता भर्तृहरि हैं जो कि एक बौद्ध आचार्य माने जाते हैं। वैंसे तो भर्तृहरि ने बहुतेरे ग्रंथ लिखे हैं तथापि भर्तृहरि के सभी ग्रंथो में वाक्यपदीय की विशेष ख्याति है।

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वाक्यपदीय ग्रंथ का स्वरूप

वाक्यपदीयम् नामक ग्रन्थ को काण्डों में विभाजित किया गया है। इसमें कुल तीन काण्ड हैं।

  • पहला काण्ड- ब्रह्मकाण्ड 
  • दूसरा काण्ड- वाक्य काण्ड
  • तीसरा काण्ड- पद काण्ड


ब्रह्मकाण्ड को ही आगमकाण्ड भी कहा जाता है। इस काण्ड में शब्दब्रह्म व स्फोट का स्वरूप बताया गया है। विभिन्न संस्कृत परीक्षाओं की दृष्टि से ब्रह्मकाण्ड अत्यन्त उपयोगी है। 

यदि आप वाक्यपदीय ग्रंथ का पहला काण्ड- ब्रह्म काण्ड डिजिटल वीडियो लेक्चर के माध्यम से पढना चाहते हैं तो हमारे यूट्यूब चैनल पर जाएँ।

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वाक्यपदीयम् वीडियो (Vakyapadiya Classes)

https://www.youtube.com/live/QMGC5_gILNk?si=pm_gNRSkrTV2UfB6

वाक्यपदीयम् की अन्य कक्षाओं के लिए वन्दे संस्कृतमातरम् यूट्यूब चैनल पर जाएं।

वाक्यं च पदं च इति वाक्यपदे ते अधिकृत्य कृतो ग्रंथः- वाक्यपदीयम्। यह वाक्यपदीय शब्द की व्युत्पत्ति है। इसका अर्थ है कि वाक्य और पद दोनों का समन्वय जिस ग्रंथ में बताया गया है उसे वाक्यपदीय कहते हैं।

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वाक्यपदीय ब्रह्मकाण्ड (संस्कृत श्लोक व हिन्दी अर्थ)

यंहा वाक्यपदीयम् ब्रह्म काण्ड का प्रारंभिक श्लोकों की व्याख्या की गयी है जो कि UGC NET Sanskrit अथवा विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यन्त उपयोगी है। 

UGC NET Sanskrit Syllabus के अनुसार भी वाक्यपदीयम् कोड 25 की छठी यूनिट में विशेष रूप से रखा गया है। यदि आप यूजीसी नेट संस्कृत सिलेबस देखना चाहते हों तो अभी देखने के लिए यंहा क्लिक करें- UGC NET Sanskrit Syllabus


वाक्यपदीयम् ब्रह्मकाण्ड (संस्कृत श्लोक - हिंदी व्याख्या)

वाक्पदीयम-‐--‐----🌹🌹

अनादिनिधनं ब्रह्म शब्दतत्वं यदक्षरम्। 

विवर्तते अर्थभावेन प्रक्रिया जगतो यतः।। श्लोक 1।।

हिंदी अर्थ- शब्द तत्व ही अक्षर है ।आदि, निधन से रहित शब्द रूपी ब्रह्म है। पूरे संसार के जितने भी कार्य हैं, प्रक्रिया हैं वह शब्द के आश्रित हैं। शब्द तत्व अर्थ भाव में विवर्त्त होता है। 


एकमेव यदाम्नातं भिन्नं शक्तिव्यापाश्रयात्। 

अपृथक्त्वेऽपि शक्तिभ्यः पृथक्त्वेनेव वर्तते।।श्लोक 2।।

हिंदी अर्थ- जो शब्द ब्रह्म एक ही कहा गया है फिर भी उसकी यानी शब्द ब्रह्म की बहुत सारी शक्तियां हैं। अपने शक्तियों का आश्रय लेने के कारण भिन्न-भिन्न दिखाई देता है। वो अपनी शक्तियों से भिन्न नहीं है। फिर भी अलग जैसा दिखाई पड़ता है। 


अध्याहितकलां यस्य कालशक्तिमुपाश्रिताः। 

जन्मादयो विकाराः षड्भावभेदस्य योनयः।।3।।

हिंदी अर्थ- जिस शब्द ब्रह्म की कलाएं अध्याहित-आरोपित जिसकी नित्य शक्तियां हैं वो कालशक्ति का आश्रय लेकर 6 भाव रूप में परिवर्तित हो जाती है। 6 भाव विकार-1.जायते, 2.अस्ति, 3.विपरिणमते, 4.वर्ध्दते, 5. अपक्षीयते, 6.विनश्यति। 


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एकस्य सर्वबीजस्य यस्य चेयमनेकधा। 

भोक्तृभोक्तव्यरूपेण भोगरूपेण च स्थितिः।।4।।

हिंदी अर्थ- शब्द तत्व एक है, सबका बीज है। भोक्ता के रूप में, भोक्तव्य के रूप में, भोग के रूप में यानि अनेक प्रकार की स्थिति हो जाती है। 


प्राप्त्युपायोऽनुकारश्च तस्य वेदो महर्षिभिः। 

एकोऽप्यनेकवर्त्मेव समाम्नातः पृथक् पृथक्।।5।।

हिंदी अर्थ- उस शब्द ब्रह्म की प्राप्ति का उपाय ,आकृति वेद है। वेद एक ही था फिर भी महर्षियों के द्वारा अलग-अलग तरह से कहा गया ।


भेदानां बहुमार्गत्वं कर्मण्येकत्र चाङ्गता। 

शब्दानां यतशक्तित्वं तस्य शाखासु दृश्यते।।6।।

हिंदी अर्थ- वेद के बहुत ज्यादा भेद होने से अनेक मार्ग हो गए। लेकिन कर्म के बात होते हैं तो सब एक हो जाते हैं, समाहार हो जाता है। प्रत्येक वेद में अलग-अलग व्याख्यान हैं, शब्दों का अलग-अलग विभाजन है। लेकिन कर्मों की बात आती है सारे वेदों की तो यज्ञ करने, पूजन करने की उपदेश देते हैं ।वेद की शाखाएं की नियत शक्ति है। 


स्मृतयो बहुरूपाश्च दृष्टादृष्टप्रयोजनाः।

तमेवाश्रित्य लिङ्गेभ्यो वेदविभ्दिः प्रकल्पिताः।।7।।

हिंदी अर्थ- स्मृति भी बहुत रूपों वाली है। स्मृतिग्रंथ भी दो प्रयोजन से बनाई जाती है-1.दृष्ट प्रयोजन 2.अदृष्ट प्रयोजन से। स्मृतियां भी वेदों का आश्रय लेकर यानि वेद के जाननेवाले जो व्यक्ति थे, जो विद्वान थे उन्होंने वेद चिन्हों को समझकर के, वेद के मंत्रों को जानकर के दृष्टादृष्ट प्रयोजन से स्मृतियों की रचना की। 


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तस्यार्थवादरूपाणि निश्चित्य स्वविकल्पजाः। 

एकत्विनां द्वैतिनां च प्रवादा बहुधा मताः।।8।।

हिंदी अर्थ- जितने भी दर्शन हैं जो भारतीय दर्शन हैं चाहे वो एकत्व वाले हो या द्वैतवाले हों अर्थात् वो अद्वैतवाले हों या द्वैतवालें हों वो सारे अपने -अपने विकल्पों के साथ वेद से ही उत्पन्न हुए। 


सत्या विशुध्दिस्तत्रोक्ता विद्यैवैकपदागमा। 

युक्ता प्रणवरूपेण सर्ववादाविरोधिनी।।9।।

हिंदी अर्थ- प्रणव यानी ओमकार। जो एकपदागम स्वरूप विद्या है- ओमकार का, वही विशुद्धि है, बिल्कुल मूल रूप से वही सत्य है। वेद में भी ये बात स्पष्ट की गई है। सभी वादों के अविरोधि केवल ओमकार है। वही 'प्रणवरूपा विद्या ' है। 


विधातुस्तस्य लोकानामङ्गोपाङ्गनिबन्धनाः। 

विद्याभेदाः प्रतायन्ते ज्ञानसंस्कारहेतवः।।10।।

हिंदी अर्थ- समस्त संसार का विधातु शब्दब्रह्म स्वरूप का जो वेद है उसके अंग उपांग जितने भी हैं उन अंगोपांगों से युक्त जितने भी प्रकार की विद्याएं हैं यानि विद्याओं का बहुत्व है वह ज्ञान और संस्कार को देनेवाली है। उन अंगोंपांग में संस्कार आदि ज्ञान हैं। 


आसन्नं ब्रह्मणस्तस्य तपसामुत्तमं तपः। 

प्रथमं छन्दसामङ्ग प्राहुर्व्याकरणं बुधाः।।11।।

हिंदी अर्थ- उस वेद स्वरूपी ब्रह्म के समीप में रहनेवाला सभी तपों में सर्वश्रेष्ठ तप व्याकरण है। छन्दों का या वेदों का सबसे पहला अंङ्ग व्याकरण है। 

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प्राप्तरूपविभागाया यो वाचः परमो रसः। 

यत्तत्पुण्यतमं ज्योतिस्तस्य मार्गोऽयमाञ्जसः।।12।।

हिंदी अर्थ- वैखरी को प्राप्तरूप विभाग कहा गया है क्योंकि जब हम वैखरी वाणी बोलते हैं इसके बहुत सारे विभाग होते हैं। इसको सक्रम भी कहते हैं। उस वैखरी वाणी का परम रस भी व्याकरण है और उस व्याकरण का सरल उपाय है वह लघुप्रयोजन है। वही व्याकरण परम पुण्य, प्रकाश स्वरूप और अञ्जस है। 


अर्थप्रवृत्तितत्वानां शब्दा एव निबन्धनम्। 

तत्त्वावबोधः शब्दानां नास्ति व्याकरणादृते।।13।।

हिंदी अर्थ- अर्थ यानि घटादि रूप। असन्देह रूप जो व्याकरण है वही अर्थप्रवृत्ति तत्त्वों का बोधक है। शब्दों का तत्वबोध व्याकरण से होता है। अर्थप्रवृत्तितत्व का जो उपाय है वह व्याकरण है।


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