मनुस्मृति अध्याय 1 (मनुस्मृति प्रथम अध्याय)
प्यारे पाठकों, मनुस्मृति को आखिर कौन नहीं पढना चाहेगा। मनुस्मृति में लिखी सुन्दर रोचक बातें हर किसी को अपनी ओर खींच ही लेती हैं। मनुस्मृति हिन्दू धर्म का एक विशिष्ट ग्रंथ है। इसके रचयिता स्वायम्भुव मनु माने जाते हैं। मनुस्मृति में कुल बारह अध्याय हैं। जिनमें कुछ अध्याय तो बहुत ही खास हैं। जैंसे कि मनुस्मृति अध्याय 1 , मनुस्मृति अध्याय 2 इसके अतिरिक्त और भी कुछ खास विशेष अध्याय हैं जो आपको जरूर पढने चाहिए।
आज इसी शृंखला में मनुस्मृति प्रथम अध्याय का एक एक श्लोक के साथ अध्ययन करने जा रहे हैं। आप सभी प्रिय पाठक मनुस्मृति अध्याय 1 (प्रथम अध्याय) को अच्छे ढंग से समझने की कोशिश करें और अन्त में हमें कमेंट करके यह जरूर बताएं कि आपको मनुस्मृति के प्रथम अध्याय में सबसे अच्छी बात क्या लगी। तो चलिए, जानते हैं मनुस्मृति प्रथम अध्याय को एक-एक श्लोक के साथ में।
इस लेख में
मनुस्मृति अध्याय 1 (प्रथम अध्याय) |
मनुस्मृति प्रथम अध्याय का सरल अर्थ |
मनुस्मृति अध्याय 1 PDF कंहा मिलेगा |
मनुस्मृति नोट्स कंहा मिलेंगे |
मनुस्मृति अध्याय 2 तथा मनुस्मृति अध्याय 7 |
मनुस्मृति अध्याय 1 (प्रथम अध्याय)
प्यारे पाठकों, शायद आप सभी को पता ही होगा कि मनुस्मृति में कितने अध्याय हैं। मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं। अगर आपने इससे पहले वाला मनुस्मृति का परिचय यह लेख पढा होगा तो आपको मनुस्मृति के बारें में सारा ज्ञान हो जाएगा। जैंसे कि मनुस्मृति कब लिखी गयी, मनुस्मृति किसने लिखी- विवाद, मनुस्मृति के टीकाकार आदि बहुत सारी बातों की चर्चा हम उस लेख में कर चुके हैं। उसको पढने के बाद आपको मनुस्मृति प्रथम अध्याय को समझने में बहुत आसानी होगी और खूब आनन्द भी आएगा। यदि आपने वह लेख नहीं पढा है तो उसे जरूर पढें। पढने के लिए यंहा दबाएं- मनुस्मृति का पूरा परिचय। तो चलिए अब मनुस्मृति अध्याय 1 यानि प्रथम अध्याय को एक-एक श्लोक के साथ पढना शुरु करते हैं।
मनुस्मृति प्रथम अध्याय का सरल अर्थ
मनुस्मृति के प्रथम अध्याय में कुल 119 श्लोक हैं। संस्कृत अथवा अन्य विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में मनुस्मृति से प्रश्न पूछे जाते हैं। यूजीसीनेट संस्कृत, टीजीटी संस्कृत आदि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी आप हमारी इसी वेबसाइट पर आसनी से कर सकते हैं। तो चलिए, अब हम मनुस्मृति प्रथम अध्याय को पढना शुरु करते हैं और हां यदि आपको मनुस्मृति अध्याय 1 PDF चाहिए हो तो उसका लिंक भी आपको इस पाठ के अन्त में मिल जाएगा।मनुस्मृति अध्याय 1 श्लोक 1
मनुमेकाग्रमासीनमभिगम्य महर्षयः।
प्रतिपूज्य यथान्यायमिदं वचनमब्रुवन।।1।।
अर्थ - मनु महाराज एकांत जगह में बैठे हुए हैं। वहां पर बहुत सारे ऋषि-मुनि जाते हैं और भगवान मनु की पूजा-अर्चना करते हैं। इसप्रकार पूजा के फलस्वरूप मनु महाराज से प्रश्न करते हैं कि-
भगवन्! सर्ववर्णानां यथावदनुपूर्वशः।
अन्तरप्रभवाणां च धर्मान्नो वक्तुमर्हसि।। श्लोक 2।।
अर्थ- हे भगवान! सभी वर्णों (जाति) का धर्म यथावत् हमको बताइये। एवं इन वर्णों के अंदर जितने भी धर्म-सम्प्रदाय हैं, उन सभी के धर्मों के बारे में हमें बताने की कृपा करें।
त्वमेको ह्यस्य सर्वस्य विधानस्य स्वयम्भुवः।
अचिन्त्यस्याप्रमेयस्य कार्यतत्वार्थवित्प्रभो।। श्लोक 3।।
हिंदी अर्थ- हे भगवन! तुम ही इस संसार के सब विधानों के स्वयम्भू हो। अर्थात् तुमने ही इस संसार में सबसे पहले ये नियम कानून बनाए हैं। तुम ही एक अचिन्त्य हो।जो अप्रमेय ब्रह्म है, उसके वास्तविक तत्व को जाननेवाले तथा मोक्ष को जाननेवाले केवल एकमात्र आप ही हो।
स तै पृष्टस्तथा सम्यगमितौजा महात्मभिः।
प्रत्युवाचार्च्य तान्सर्वान्महर्षिञ्छ्रूयतामिति। । श्लोक 4।।
हिंदी अर्थ- ऋषि-मुनियों के पूछने पर भगवान मनु भी उन ऋषि-मुनियों के प्रत्युवचन करने से पहले उनकी अर्चना और सत्कार करते हुए प्रत्युवचन देते हैं और कहते हैं सुनो! (आप लोग भी ध्यान से सुनिए और ध्यान से पढिए)
आसीदिदं तमोभूतमप्रज्ञातमलक्षणम्।
अप्रतर्क्यमविज्ञेयं प्रसुप्तमिव सर्वतः।। श्लोक 5।।
हिंदी अर्थ- भगवान मनु ऋषि -मुनियों से कहते हैं- यह सम्पूर्ण संसार अंधकारमय था। कहीं भी कुछ नहीं था। न कोई इसको जान सकता था और न ही इसका कोई लक्षण था। इसके बारें में कोई तर्क-वितर्क भी नहीं कर सकता था। यह जानने योग्य नहीं था। यह प्रसुप्त (सोये हुए) संसार की आदिम अवस्था ही सबसे पहली अवस्था थी। उस समय अंधकार ही अंधकार था। बिल्कुल सोये हुए व्यक्ति के जैंसे यह ब्रह्माण्ड भी अन्धकार में सोया हुआ था।
तदण्डमभवद्धैमं सहस्त्रांशुसमप्रभम्।
तस्मिन्जज्ञे स्वयं ब्रहमा सर्वलोकपितामहः। श्लोक 6।।
हिंदी अर्थ- इस सृष्टि को बनाने से पहले भगवान ने जो स्वयंभू था। अर्थात् स्वयं उत्पन्न हुआ। उसने सबसे पहले अपने आप को बनाया । तत्पश्चात उन्होंने इस सृष्टि की रचना करने का संकल्प लिया और उन्होंने 5 तत्वों को निर्माण किया। "क्षिति जल पावक गगन समीरा। अर्थात् पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश इन पंच महाभूतों की उत्पत्ति की।
योऽसावतीन्द्रियग्राह्यः सूक्ष्मोऽव्यक्तः सनातनः।
सर्वभूतमयोऽचिन्त्यः स एव स्वयमुद्वभौ ।। श्लोक 7।।
हिंदी अर्थ- जो ईश्वर था, जिसने इस सृष्टि की रचना की, जिसने इन पंच भूतों को व्यक्त किया, जिसने इस जगत की उत्पत्ति की, जो स्वयंभू था, जो परमात्मा था जिसकी उत्पत्ति का कोई कारण नहीं था। ऐंसा ईश्वर जिसको इंद्रियों के द्वारा जाना नहीं जा सकता है। जिसके बारे में कोई कुछ बता भी नहीं सकता है। वह सनातन है। अनादि व अनन्त है और सभी प्राणियों में वही ईश्वर है। ऐंसे उस अनादि अनन्तरूप परमेश्वर ने सबसे पहले अपने आप को ही बनाया।
सोऽभिध्यायशरीरात्स्वात्सिसृक्षुर्विविधाः प्रजाः।
अप एव ससर्जादौ तासु बीजमवासृजत् ।। श्लोक 8।।
हिंदी अर्थ- जो वह परमात्मा था। उसने सर्वप्रथम सृष्टि की रचना करने के लिए अपने मन ही मन में ध्यान करके अपने ही शरीर से सबसे पहले जल की उत्पत्ति की और फिर उस जल में एक बीज बोया।
तदण्डमभवद्धैमं सहस्त्रांशुसमप्रभम्।
तस्मिन्जज्ञे स्वयं ब्रहमा सर्वलोकपितामहः ।।9।।
हिंदी अर्थ- जो बीज उस परमात्मा ने जल में बोया था। उस बीज फिर से अंडा उत्पन्न हुआ, जो सोने का अण्डा था। वह स्वर्णमय अण्डा करोड़ों सूर्य की रोशनी के समान चमक रहा था। फिर उस अंडे से सभी लोगों के परम पिता ब्रह्मा जी ने अपने आप को प्रगट किया।
आपो नारा इति प्रोक्ता आपो वै नरसूनवः ।
ता यदस्यायनं पूर्वं येन नारायणः स्मृतः ।। श्लोक10।।
हिंदी अर्थ- जो जल है। वह भगवान नर (विष्णु) के पुत्र समान है। अरः जल को नार कहा जाता है क्योंकि जल नर अर्थात् विष्णु से उत्पन्न होता है। (नरस्य अपत्यम् इति नारम् अण् प्रत्यय) । नर भगवान विष्णु को ही कहा जाता है और उनसे ही जल की उत्पत्ति हुई। इसलिए जल को नार भी कहा जाता है। नार का आयन अर्थात् आश्रय होने के कारण ही भगवान विष्णु को नारायण भी कहा जाता है।
यत्तत्कारणमव्यक्तं नित्यं सदसदात्मकम्।
तद्विसृष्टः सः पुरुषो लोके ब्रह्मेति कल्प्यते ।। श्लोक 11।।
हिंदी अर्थ- सबसे पहले जो कारण था। जिसे कोई जान नहीं सकता था। वह नित्य था। सनातन था। सद् और असद् दोनों से युक्त था। नित्य संसार व अनित्य संसार दोनों उसी में समाए थे। उसको जो रचने वाला था, जो सृष्टि को रचने वाला था, जो कारण को जो रचने वाला था जो सबसे पहले था वही इस संसार में ब्रह्म के रूप में जाना जाता है।
तस्मिन्नण्डे स भगवानुषित्वा परिवत्सरम् ।
स्वयमेवात्मनो ध्यानात्तदण्डमकरोद्द्विधा ।। श्लोक 12।।
हिंदी अर्थ- उस अंडे में वही भगवान स्वयंभू 1 साल तक रहे थे। उस अंडे के अंदर ही ब्रह्मा जी ने ध्यान लगा कर गहन चिंतन व कल्पना करके उस अंडे के दो टुकड़ों मैं विभाजित कर दिया। जब अंडे के दो टुकड़े हो गए तब उन टुकड़ों से स्वर्ग आदि लोकों का निर्माण हुआ।
ताभ्यां स शकलाभ्यां च दिवं भूमिं च निर्ममे।
मध्ये व्योम दिशश्चाष्टावपां स्थानं च शाश्वतम् ।श्लोक 13।।
हिंदी अर्थ- "मनुस्मृति" ग्रन्थ के रचनाकार स्वायम्भूव मनु ऋषियों के सम्मुख जगत् की सृष्टि के बारे में बताते है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने एक वर्ष तक उस स्वर्णमय अण्डे में रहकर ध्यान किया एवं उस विराट अण्डे को दो भागो में विभाजित किया। विभाजित हुये अण्डे के दो टुकड़ों से ब्रह्मा ने ऊपर वाले भाग से स्वर्गलोक , मध्यभाग से अन्तरिक्ष लोक एवं नीचे वाले भाग से पृथ्वीलोक का निर्माण किया। अर्थात् सत्वगुणरूपी स्वर्ग एवं तमोगुणरुपी भूलोक के बीच रजोगुणरुपी अन्तरिक्ष का निर्माण हुआ। इसके साथ-साथ उस परमपिता ब्रह्मा ने उसी अण्डे से फिर पूर्वादि अष्ट दिशाओं का एवं समुद्र आदि का निर्माण भी किया।
शेषभाग (अगले लेख में है।)
मनुस्मृति अध्याय 1 Video Lecture
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मनुस्मृति अध्याय 1 PDF कंहा मिलेगा
मनुस्मृति नोट्स कंहा मिलेंगेमनुस्मृति अध्याय 2 तथा मनुस्मृति अध्याय 7
प्यारे पाठकों, मनुस्मृति प्रथम अध्याय के कुछ प्रारंभिक महत्वपूर्ण श्लोक आज की कक्षा में हमने पढे। हमें उम्मीद है कि आप सभी ने ध्यानपूर्वक आज के इस विषय को पढा होगा और मनुस्मृति के बारें में अब आप बहुत कुछ जान चुके हैं। प्यारे पाठकों, मनुस्मृति अध्याय 1 के इससे आगे के श्लोक दूसरे लेख में दिए गये हैं।
अतः आप लोग उनको भी जरूर पढ लीजिएगा। इसी के साथ यदि आप मनुस्मृति अध्याय 1 PDF Download करना चाहते हैं तो उसका लिंक भी यंहा दिया जा रहा है। मनुस्मृति नोट्स, मनुस्मृति अध्याय 2 तथा मनुस्मृति अध्याय 7 के महत्वपूर्ण नोट्स एवं मनुस्मृति अध्याय 1 PDF प्राप्त करन के लिए आप यंहा क्लिक करें- मनुस्मृति नोट्स तथा PDF ।
प्यारे पाठकों, हमें उम्मीद है आज का यह विषय आप सभी को अच्छे ढंग से समझ आ चुका होगा। धन्यवादः।
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