अग्निसूक्त का परिचय | Agni sukta Rigved | अग्नि सूक्त PDF | अग्नि सूक्त के मंत्र अर्थ सहित

अग्निसूक्त ऋग्वेद- मंत्रों का अर्थ

भारतीय वैदिक साहित्य के आधार स्तंभों में से एक, अग्निसूक्त (ऋग्वेद का प्रथम सूक्त) न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सभी संस्कृत प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में इसकी केंद्रीय भूमिका है। इस लेख में आप सुधी पाठकों को अग्निसूक्त का व्यवस्थित परिचय, अग्नि सूक्त के मंत्रों का अर्थ व व्याख्या, व्युत्पत्तियाँ, अग्नि सूक्त के प्रश्न एवं परीक्षा हेतु आवश्यक सभी पहलुओं के बारे में भी विस्तार से जानकारी मिलेगी।

अग्निसूक्त का परिचय

अग्निसूक्त ऋग्वेद के प्रथम मंडल का प्रथम सूक्त है, जिसमें कुल नौ मंत्र हैं। इन्हें गायत्री छंद में रचा गया है। इन मंत्रों के द्रष्टा ऋषि मधुच्छंदा माने जाते हैं, जो कि महर्षि विश्वामित्र के 51वें पुत्र थे। अग्निसूक्त की केंद्रीय थीम अग्निदेव की स्तुति व यज्ञ में उनकी भूमिका है।

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सूक्त का अर्थ और महत्व

"सूक्त" शब्द का अर्थ है– सुंदर कथन। वेदों के उन मंत्रों का संग्रह जो किसी विशिष्ट देवता की प्रशंसा में रचे गए हों, उन्हें सूक्त कहते हैं। अग्नि ऋग्वेद के पहले एवं सबसे प्रमुख देवता हैं, क्योंकि वह यज्ञ की प्रक्रिया के केंद्र में होते हैं। सभी देवताओं को हवि (आहुति) अग्नि के माध्यम से ही दी जाती है, यहीं से उनका "अग्रणी" स्वरुप स्थापित होता है।

अग्नि शब्द की व्युत्पत्ति

  • यास्काचार्य के अनुसार "अग्नि" शब्द की व्युत्पत्ति "अग" धातु से होती है, जिसका अर्थ है– आगे चलने वाला।
  • "अग्रणी भवति"– अर्थात वह, जो सामने अग्रसर रहता है।

अग्नि न केवल यज्ञ का प्रारंभ करते हैं, बल्कि सभी देवताओं के लिए वे माध्यम, पुरोहित व होता की भूमिका निभाते हैं। अग्नि सूक्त के मंत्र, अग्नि सूक्त के मंत्र ( अग्नि सूक्त PDF नीचे दिया गया है👇)

अग्निसूक्त मंत्र

अग्निसूक्त मंत्र

मंत्र संख्या अग्निसूक्त मंत्र
1 ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । होतारं रत्नधातमम् ॥१॥
2 अग्निः पूर्वेभिरृषिभिरीड्यो नूतनैरुत । स देवाँ एह वक्षति ॥२॥
3 अग्निना रयिमश्नवत् पोषमेव दिवेदिवे । यशसं वीरवत्तमम् ॥३॥
4 अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि । स इद्देवेषु गच्छति ॥४॥
5 अग्निर्होता कविक्रतुः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः । देवो देवेभिरा गमत् ॥५॥
6 यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि । तवेत् तत् सत्यमङ्गिरः ॥६॥
7 उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम् । नमो भरन्त एमसि ॥७॥
8 राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम् । वर्धमानं स्वे दमे ॥८॥
9 स नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव । सचस्वा नः स्वस्तये ॥९॥

अग्निसूक्त के नौ मंत्र: क्रमबद्ध व्याख्या

1. प्रथम मंत्र: अग्निम इले पुरोहितम्

शब्दार्थ / मंत्र का अर्थ

  • अग्निम: अग्नि देवता
  • इले: स्तुति करता हूँ
  • पुरोहितम्: यज्ञ का मुख्य अधिकारी (पुरोहित),
  • देवं: दान, दीपना और दान का गुण रखने वाला,
  • ऋत्विजम्: ऋतु के अनुसार यज्ञ करने वाला,
  • होतारम्: आह्वान करने वाला,
  • रत्नधातमम्: रत्नों को धारण या प्रदान करने वाला।

हिन्दी अर्थ:
मैं उस अग्नि देवता की स्तुति करता हूँ जो यज्ञ के पुरोहित, देवताओं में अग्रणी, ऋतु के अनुसार यज्ञ सम्पन्न करने वाले, आहुति स्वीकारने वाले तथा समस्त रत्नों के दाता हैं।

विशेष- (अग्नि सूक्त के प्रश्न हेतु)

  • पुरोहित, होता, देवं, रत्नधातमम् शब्दों का अर्थ
  • इले का अर्थ (सायण: "स्तुति करता हूँ", यास्क: "प्रार्थना करता हूँ", मैकडोनल के अनुसार "महत्वगान करता हूँ")

2. द्वितीय मंत्र: अग्निः पूर्वेभिऋषिभिरीड्यः...

यहाँ बताया गया है कि अग्नि देवता प्राचीन (भृगु, अंगिरा आदि) तथा नवीन ऋषियों दोनों द्वारा स्तुति योग्य हैं। वे सभी देवताओं को यज्ञ के माध्यम से प्राप्त कराते हैं।

  • इड्यः = स्तुति के योग्य
  • पूर्वेभिः ऋषिभिः = प्राचीन ऋषियों द्वारा
  • नूतनैः = नवीन (वर्तमान) ऋषियों द्वारा
  • स देवाँ इह वक्षति = वह अग्नि देवता सभी देवताओं को यहाँ (यज्ञ में) लाते हैं।

3. तृतीय मंत्र: अग्निना रायिमश्नवत्...

इस मंत्र में बताया गया है कि अग्नि की पूजा, स्तुति द्वारा "रयि" (धन, समृद्धि) प्राप्त होती है।

  • रयि का अर्थ– धन
  • अस्नवत्– प्राप्त हो
  • यशसम्– कीर्ति युक्त
  • वीरवत्– वीर/तेजस्वी संतानों से युक्त

हिंदी अर्थ- अग्नि देवता की आराधना से हमे धन, कीर्ति व वीर पुत्र की प्राप्ति होती है।

विशेष-

  • रयि शब्द का अर्थ- धन, वसु

4. चतुर्थ मंत्र: अग्ने यं यज्ञमध्वरम्...

यहाँ अग्निदेव को संबोधित करके कहा गया है कि तुम जिस यज्ञ–जो हिंसा रहित है–को चारों ओर से व्याप्त करते हो, वही यज्ञ देवताओं तक पहुंचता है।

  • अध्वर = हिंसा रहित यज्ञ
  • विश्वतः = चारों ओर से
  • परिभूस् = व्याप्त होने वाला
  • देवेषु गच्छति = देवताओं में प्रविष्ट होता है

5. पंचम मंत्र: अग्निः होता कविक्रतुः...

अग्नि देव को अनेक विशेषणों से संबोधित किया गया है:

  • होंता: यज्ञ की सम्पन्नता करने वाला
  • कवि-कृतु: ज्ञानवान
  • सत्य: सत्य स्वरुप
  • चित्रश्रवस्तमः: विविध कीर्ति देने वाला
  • देवो देवभिरागमत्: देवताओं के साथ पधारें

इसे भी देखें- दर्शपूर्णमास यज्ञ क्यों किया जाता है- परिचय

विशेष-

  • अग्नि के लिए कविक्रतु व चित्रश्रवस्तम विशेषण

6. षष्ठ मंत्र: यदंग दाशुसे...

यहाँ ऋषि अग्निदेवता से विनती करते हैं कि हे अग्निदेव, जब भी कोई यजमान (हव्य देने वाला) तुम्हारे सामने आहुति दे, उसके लिए तुम जो भला करते हो, वह सब तुम्हारा है; वह सत्य ही है।

  • दासुसे = यजमान के लिए
  • भद्रम = कल्याण
  • करिष्यसि = करोगे

विशेष-

  • अंगिरस का अर्थ (अंगार में उत्पन्न होने वाला/आंगीरस ऋषि को उत्पन्न करने वाला)

7. सप्तम मंत्र: उप त्वाग्ने दिवे दिवे...

ऋषि कहते हैं कि हे अग्निदेव, हम हर दिन, दिन-रात, आपकी श्रद्धा से स्तुति करते हैं और आपकी शरण में हैं।

  • दोषावस्तः = दिन–रात
  • धिया = बुद्धि से
  • नमो भरंत = नमन करते हुए
  • एमसि = आपकी शरण में आते हैं

8. अष्टम मंत्र: राजन्तमध्वराणाम्...

यहाँ अग्नि को अध्वर (हिंसा रहित यज्ञों) का रक्षक, अमृत का संरक्षक और अपने गृह (यज्ञशाला) में निरंतर बढ़ने वाला कहा गया है।

  • राजन्तम = शासक, प्रकाशक
  • गोपामृतस्य = अमृत का रक्षक
  • दीदिव्यम् = प्रकाशित करने वाला
  • वर्धमानम् स्व दमे = अपने घर में बढ़ने वाला

इसे भी देखें-  यम नचिकेता संवाद

विशेष-

  • दमे का अर्थ (गृह/यज्ञशाला)

9. नवम मंत्र: स नः पितेव...

अंतिम मंत्र में उपमा दी जाती है– जैसे पिता अपने पुत्र का भला चाहता है, वैसे ही अग्नि देवता हमारे लिए शुभकारी बनें और हमें कभी ना छोड़ें।

  • स नः पितेव सुनवे... = जैसे पिता अपने पुत्र के लिए कल्याणकारी होता है, उसी प्रकार अग्नि देवता हमारे लिए बनें
  • सुपायनः = शुभ/सुगम
  • भव = हो
  • सचसवान = साथ रहने वाला, संगति करने वाला
  • स्वस्तये = कल्याण के लिए

विशेष बिंदु-

मैकडोनल के मत में "सचस्वान" का अर्थ "साथ रहना" है।

अभ्यास और परीक्षा केन्द्रित टिप्स

  • मंत्रों के स्वर (उदात्त, अनुदात्त, स्वरित) अवश्य याद रखें।
  • गायत्री छंद के लक्षण– 24 अक्षर, 3 पाद युक्ति।
  • ‘अग्नि’, ‘पुरोहित’, ‘होंता’, ‘कवि कृतु’ आदि शब्दों की व्याकरणिक उत्त्पत्ति ध्यान दें।
  • प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रायः अर्थ, विशेषण, व्युत्पत्ति, संदर्भ, छंद आदि से सीधे प्रश्न आते हैं।
ऋग्वेद अग्निसूक्त 1.1 प्रश्न उत्तर
ऋग्वेद अग्निसूक्त 1.1 पर आधारित प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: अग्निसूक्त में अग्नि को किस रूप में पूजा गया है?
उत्तर: अग्नि को पुरोहित और यज्ञ के देवता के रूप में पूजा गया है।
प्रश्न 2: अग्नि के कौन-कौन से गुण बताए गए हैं?
उत्तर: अग्नि को रत्नधातम (सर्वश्रेष्ठ) और होता (यज्ञकर्ता) कहा गया है।
प्रश्न 3: अग्नि किसके द्वारा पूजित होता है?
उत्तर: ऋषियों और नूतन ऋषियों द्वारा।
प्रश्न 4: अग्नि किस उद्देश्य से मानवों के लिए प्रकट हुआ है?
उत्तर: वह मानवों के यज्ञ में रयि/धन(समृद्धि) और पोषण लाने के लिए प्रकट हुआ है।
प्रश्न 5: अग्नि सूक्त में कौन सा छंद है?
उत्तर: गायत्री

अग्निसूक्त और जीवन में उसका प्रयोग

अग्निसूक्त के पाठ का धार्मिक और व्यक्तिगत जीवन में भी बड़ा प्रभाव है। अग्नि सूक्त PDF  शीतकाल में अग्निसूक्त, नेत्ररोग में सूर्यसूक्त, जल से संबंधित बाधा में वरुण सूक्त का पाठ करने की परंपरा हमारे वैदिक काल से चली आ रही है। अग्निसूक्त PDF यह केवल मनोकामना पूर्ति के लिए नहीं, बल्कि मन को स्थिर, तेज व सकारात्मक बनाने हेतु भी अत्यंत उपयोगी है।

धन्यवाद

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