ध्यान क्या है- Dhyan Kya Hai ❓🤔 | ध्यान कैसे करें | ध्यान का अर्थ और महत्त्व व फायदे

भारत की नम्बर वन हिंदी एजुकेशनल वेबसाइट SanskritExam.Com में आपका स्वागत है। आज के इस आर्टिकल में हम आपको ध्यान क्या है (Dhyan Kya Hai), ध्यान कैसे करें, नियमित ध्यान के फायदे, ध्यान का अर्थ और महत्व, ध्यान से शक्ति कैसे प्राप्त करें इत्यादि ध्यान (Meditation) से जुड़ी विशेष जानकारी दे रहे हैं। आइये जानते हैं- ध्यान क्या है व ध्यान कैसे करें (What is Meditation) 

ध्यान का अर्थ / ध्यान शब्द का अर्थ

इससे पहले कि ध्यान के बारे में चर्चा की जाये, आइये पहले "ध्यान" शब्द की व्याख्या करते हैं। "ध्यान" शब्द हम अपने दैनिक कामकाज में अक्सर प्रयोग में लाते हैं। जैसे बच्चों से कहते हैं कि ध्यान से पढ़ो। अमुक काम ध्यान से करो। ध्यान से मेरी बात सुनो। ध्यान लगाकर काम किया था। जरा इधर ध्यान दें। इस चित्र को ध्यान से देखो, इत्यादि। इसका मतलब यह है कि 'ध्यान' किसी विशेष विषय पर अपनी चेतना को पूरे तौर से लगा देना।


ध्यान की और आगे व्याख्या करने से पहले यह बता देना उचित होगा। हमारी दुनिया में दो जगत होते हैं। एक दृश्य जगत दूसरा अदृश्य जगत।


दृश्य जगत- जो कुछ भी इन स्थूल आँखों से देखा जा सकता है, और जो मन और बुद्धि से सोचा जा सकता है वह सब दृश्य जगत के अर्न्तगत आता है।

अदृश्य जगत- जो इन आँखों से नहीं देखा जा सकता और न ही मन और बुद्धि से सोचा ही जा सकता है उसे अदृश्य जगत कहा जाता है। जिसको आत्मा, परमात्मा, ईश्वर, भगवान इत्यादि नामों से पुकारा जाता है। आध्यात्मिक क्षेत्र में इसी अदृश्य जगत में अपनी चेतना को ले जाने को ही ध्यान कहा जाता है। आखिर इस आध्यात्मिक क्षेत्र के ध्यान की हमें आवश्यकता ही क्यों हैं?


चूँकि हमारा जीवन दोनों जगतों से जुड़ा है, तो हमें दोनों जगतों के बारे में जानकारी भी रखनी चाहिए। जो आदमी जिस व्यापार, नौकरी, वाहन या अन्य कोई यन्त्र को चलाता है, तो, उसके सम्बन्ध में वह जानकारी भी रखता है। किन्तु अपने जीवन रूपी मशीन के सम्बन्ध में हमारा ज्ञान बहुत ही सीमित है। 

हमें इस बात का पता ही नहीं है कि शरीर कैसे चलता है? शरीर को स्वस्थ कैसे रखा जा सकता है? रोग क्यों आते हैं? इन्हें दूर करने के लिए प्रकृति ने हमारे शरीर में क्या-क्या व्यवस्थाएं रखी है? चिन्ता क्यों आती है? डर क्यों लगता है? मान अपमान क्यों लगता है? इत्यादि।


इसीलिए अगर आप देखें तो मानव जगत ने अपनी खोजों के फलस्वरूप इतने मशीनें, दवाइयाँ, अस्पताल बना दिये परन्तु मानव जगत आज भी तमाम प्रकार की बीमारियों और चिन्ताओं से घिरा हुआ है और लगातार प्रयास होने के बावजूद बीमारियाँ और चिन्तायें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। 

जबकि इसके विपरीत जंगल में न कोई अस्पताल है और न ही कोई डाक्टर। लेकिन जंगल में रहने वाला कोई भी जानवर बीमारी या चिन्ता में नहीं मरता। आखिर क्यों? इस संबंध में मेरी समझ जो बात आयी है कि मनुष्य ने दृश्य जगत में जो ध्यान दिया किन्तु अदृश्य जगत को नजर अन्दाज कर दिया।

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ध्यान का महत्व (Dhyan Ka Mahatwa) 

भारतीय आध्यात्म जगत में सांसारिक तथा पारमार्थिक दोनों दृष्टियों से ध्यान का महत्व और अनिवार्यता एकमत से स्वीकार की गयी है। भारतीय योगशास्त्र में ध्यान का अर्थ 'ध्यानं निर्विषयं मनः किया गया है। यानि मन का विषय रहित हो जाना। विषय केवल दृश्य जगत में ही होता है। अदृश्य जगत में कोई विषय नहीं रहता। इस प्रकार ध्यान की परिणाम यह हुआ "बाहरी संसार से मन एवं इन्द्रियों को हटाकर अन्तर्चेतना की ओर उन्मुख करना “।

मनुष्य के शरीर में अदृश्य जगत की एक चीज होती है जिसे आत्मा कहते हैं जिसके चले जाने के बाद लोग शरीर को मृत करार करके जला देते हैं। शायद हम उस अदृश्य जगत की चीज आत्मा के बारे न तो जानकारी रखते है और न ही जानकारी रखने का प्रयास ही करते हैं। वास्तव में हमारी आत्मा ईश्वरीय तत्व का भण्डार है, और ईश्वरीय तत्व सारी शक्तियों का भण्डार हैं इस प्रकार जीवात्मा ईश्वरीय शक्तियों का भण्डार हुआ। जीवात्मा, जो ईश्वरी तत्व का भण्डार है,

 यदि उसे तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये तो यह माना जा सकता है यह एक चमकता हुआ सूर्य है और ईश्वरीय तत्व इस सूर्य की किरणें है। सूर्य की किरणे बादलों से ढँकी हैं बादल यानि संस्कार। जीवन के विभिन्न पहलुओं में अपना प्रभाव दिखाने के लिये यह ईश्वरीय तत्व संस्कारों से छनकर उसी तरह आता है, जैसे बाहर की दुनिया में सूर्य की रोशनी भी केवल बादलों से छनकर जमीन तक पहुँचती है। ज्यों-ज्यों बादल हटते हैं, त्यों-त्यों सूर्य की अधिक रोशनी एवं गरमाहट जमीन में आने लगती है। 

ठीक इसी प्रकार ज्यों-ज्यों आत्मा के ऊपर से संस्कार के बादल हटने लगते है, त्यों-त्यों मानव के शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि एवं अहं पर क्रमशः स्वास्थ्य, शक्ति, आनन्द, ज्ञान एवं प्रेम की गरमाहट आने लगती है और जीवन के विभिन्न पहलू यानि, परिवार, व्यापार, नौकरी और अन्य सम्बन्धों में रोशनी आने लगती है।

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ध्यान कैसे करें? ध्यान केंद्रित कैसे करें - Dhyan Kaise Karen

ध्यान के महत्व समझ लेने के बाद यह जानना आवश्यक हो जाता है कि ध्यान कैसे किया जाये। थोड़ा सा समय निकाल कर किसी भी शान्त स्थान में, आरामदायक अवस्था में, सहज आसन में, आँख बन्द करके बैठ जायें। धीमे-धीमे मन में अपने ईष्ट का स्मरण करते हुए 8-10 बार नाम लें। फिर अपने मन की छुट्टा छोड़ दें। 

मस्तिष्क को आराम की अवस्था में रखें। ईष्ट का नाम जप छूट जाने दो। अगर नाम जप चल रहा हो तो चलने दो। मन और मस्तिष्क में किसी प्रकार का जोर मत दो। जो भी विचार आ रहे है आने दो, विचार बदल रहे हैं तो उनको बदलने दो। गन्दे विचार आ रहे हैं तो उनको आने से मत रोको। अच्छे विचार आ रहे हैं तो उनको पकड़े मत रहो। आपका मन और बुद्धि जहाँ भी जाना चाहता है उसको जाने दो। बिल्कुल छुट्टा छोड़ दो।

"आँख बंद करके बैठना और मन को स्वतन्त्र छोड़ देना, जिससे मन में समाये संस्कार रूपी बादल, हवा रूपी विचारों से छँटने की प्रक्रिया को ही ध्यान कहते हैं।"

आँख बन्द कर देने के बाद जितनी देर आप अपने आप को भूले हुए हैं, उतने समय तक आपका ध्यान लगा हुआ था। जबरदस्ती अपने आपको भूलने का प्रयास नहीं करना है। अपने आप को थोड़ी देर तक भूल जाना एक सहज प्रक्रिया होनी चाहिए।

"मन और मस्तिष्क का मौन हो जाना ही ध्यान है।" ध्यान वास्तव में एक अवस्था है क्रिया नहीं। जब तक आप कुछ करते है चाहे वह मंत्र जाप हो, पूजा हो, भगवान को याद करने की क्रिया हो, आप ध्यान से दूर हैं। वास्तव में "ध्यान जाग्रत अवस्था में एक सहज नींद है, और नींद निद्रावस्था में एक सहज ध्यान है।" 

फर्क दोनों में यह है कि नींद के बाद बाहर आने पर शरीर में स्फूर्ति और मस्तिष्क में आराम मिलता है। दूसरी तरफ ध्यान से बाहर आने पर शरीर में स्फूर्ति और मस्तिक में आराम के साथ-साथ मन में आनन्द, बुद्धि में प्रकाश और अहं में प्रेम की उपलब्धि भी मिलती है।

"भीतर से जाग जाना ही ध्यान है।" हमें एक बार में कम से कम बीस-पच्चीस मिनट तक बैठना चाहिए। यदि बीच में किन्हीं कारणों से आँख खुल भी जाये तो कोई परेशानी की बात नहीं। उसी समय दुबारा फिर से आँख बन्द करके बैठ जाइये। याद रखें कि आपको बीच- पचीस मिनट का समय आँख बन्द किए हुए पूरा करना है। यह प्रक्रिया चौबीस घण्टे में कम से कम तीन बार तो अवश्य करना ही करना है। 

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नियमित ध्यान के फायदे- Dhyan Ke Fayde/ Meditation Benefits

याद रखें नींद से बाहर आने पर शरीर में स्फूर्ति और मस्तिष्क में आराम का रिजल्ट तो तुरन्त मिलता है। लेकिन ध्यान का रिजल्ट- यानि मन में आनन्द, बुद्धि में प्रकाश और अहं में प्रेम की उपलब्धि, एक दो महीने के अभ्यास के बाद आना शुरू होता है। कभी भी नंगी जमीन पर बैठकर ध्यान नहीं करना है। क्योंकि ध्यान के समय हमारी कुण्डलनी में शक्ति का जागरण होता है। जमीन में कोई कुचालक आसन, दरी, गद्दा आदि बिछा लेना है। यदि पीठ से टेक लेने की आवश्यकता महसूस हो रही हो तो दीवार और पीठ के बीच में कोई कुचालक जैसे तकिया रख सकते हैं लेकिन किसी भी दशा में सिर का टेक नहीं लेना है।

आपका ध्यान हो रहा है कि नहीं, इसका थर्मामीटर यह है कि जब हमें ध्यान करने में कोई प्रयास, कोई विशेष श्रम नहीं करना पड़ रहा है। यहाँ तक कि ध्यान बन्द करना ही प्रयत्नसाध्य होने लगे तो समझिये कि हमारा ध्यान लग रहा है। जब ध्यान करना हमारे जीवन की आवश्यकता बन जाती है, जब उसे किये बिना हम रह ही नहीं सकते और जब वह सुबह से शाम तक स्वाभाविक रूप में ध्यान करने की इच्छा रहती है, तभी यह कहा जा सकता है कि हम निश्चित रूप से ध्यान में प्रगति कर रहे हैं।

त्गा,ता रहेगा और ध्यान के समय नींद भी आने लगेगी। इसलिए ध्यान के साथ तप और सेवा की साधना को जोड़ा गया है। तप की साधना से शरीर का मल हटेगा, इससे ध्यान के समय नींद नहीं आयेगी और सेवा की साधना से मन अंतर्मुखी होगा और मन अंदर से आनंद लेने लगेगा। इससे अंतःस्थित अवचेतन मन में संस्कारों का बनना भी कम होगा और तब बिना विशेष प्रयास के मन स्वतः निर्मल होने लगेगा।


प्रिय पाठकों, आज यहाँ इस वेबसाइट पर ध्यान क्या है (Dhyan Kya Hai), ध्यान कैसे करें, ध्यान से शक्ति प्राप्त कैसे करें, ध्यान करने के फायदे, नुकसान, ध्यान का अर्थ व महत्व इत्यादि विभिन्न प्रकार की जानकारी प्रस्तुत की गयी। यदि आपके मन में कोई भी सवाल हो तो आप नीचे कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हैं। 

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