UGC NET Sanskrit Notes Study Material 2021| वेदान्त दर्शन- ⭕ The Vedanta Pholosophy

UGC NET Sanskrit Notes Study Material 2021| वेदान्त दर्शन- ⭕ The Vedanta Pholosophy

नमोवाक् सर्वेभ्यः 🙏 मित्रों,😍 जैंसे कि आप सबको पता है कि हम अपनी इस साइट पर संस्कृत की विभिन्न प्रतियोगिता हेतु जैंसे UGC NET Sanskrit 2021 Preparation के लिए UGC NET Online Mock Test एवं विभिन्न Sanskrit Notes प्रस्तुत करते रहते हैं।

जी हाँ! आज उसी क्रम में हम आपके लिए - यू जी सी नेट संस्कृत का एक महत्वपूर्ण विषय लेकर आए हैं! आपसे निवेदन है कि अन्त में हमें नीचे अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें! 



                आज का विषय ➡ वेदान्त दर्शन

मित्रों 😍 सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से वेदांत दर्शन अत्यंत महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है आपके मन में भी ये सवाल जरूर होंगे -


🔴वेदान्त क्या है? What is VEDANTA PHILOSOPHY?

🔵अनुबन्धचतुष्टय क्या है? What is Anubandha?

⚫साधनचतुष्टय क्या हैं? What are sadhna

🔴अध्यारोप क्या है? What is Adhyaropa?


आइये,मित्रों!  वेदान्त दर्शन के इन सभी प्रश्नों के उत्तर की ओर अभिमुख होते हैं। 

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वेदान्त दर्शन - Vedanta- An introduction

सर्वप्रथम वेदान्त शब्द की ओर चलते हैं - वेद + अन्त इति वेदान्तः।वेदों के अन्तिम भाग अर्थात् सबसे अन्त में उपनिषदों की रचना हुई अतः उपनिषदों को वेदान्त कहा जाता है। 

वेदों में जो दार्शनिक तथ्य पाए गये हैं उनका निष्कर्ष उपनिषदों में प्राप्त होता है। अतः उपनिषदों को वेदान्त कहा जाता है।

उपनिषदों के ज्ञान को अगर किसी ने एक जगह एकत्रित किया है तो, वह हैं बादरायण मुनि। 

जी, बादरायण व्यास जी ने उपनिषदों के दार्शनिक विचारों को एकत्रित करने के लिए - ब्रह्मसूत्र की रचना की। उपनिषदों का सारतत्व होने के कारण ब्रह्मसूत्र को वेदान्त दर्शन कहा जाता है। जैंसे कि कहा भी गया है ➡ 

वेदान्तो नामोपनिषत्प्रमाणम् इति।।

हिंदी अर्थ- वेदान्त को उपनिषदों का प्रमाण ग्रंथ कहा जाता है।


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                       ब्रह्मसूत्र ➡ परिचय

  • ग्रंथ       ➡   ब्रह्मसूत्र
  • रचयिता  ➡  बादरायण
  • अध्याय   ➡  चार (४)
  • पाद        ➡   १६ पाद
  • अधिकरण  ➡  १९२
  • सूत्र           ➡   ५५५


ब्रह्मसूत्र के अन्य नाम ➡ उत्तरमीमांसा, बादरायणसूत्र, ब्रह्ममीमांसा, वेदान्तसूत्र, व्याससूत्र, शारीरिकसूत्र।

ब्रह्मसूत्र में विभिन्न उपनिषदों के वाक्यों पर चर्चा की गयी है।

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                        ब्रह्मसूत्र पर भाष्य                      

शारीरिक भाष्य -  शंकराचार्य

श्रीभाष्य          -  रामानुज

पूर्णप्रज्ञभाष्य    - मध्वाचार्य

भास्करभाष्य    - भास्कराचार्य

वेदान्तपारिजात - निम्बार्क

शैवभाष्य         -  श्रीकण्ठ

अणुभाष्य        -  वल्लभाचार्य

गोविन्दभाष्य    -  बलदेव

विज्ञानामृतभाष्य- विज्ञानभिक्षु

वेदान्तसार         - सदानन्द


मुनि सदानन्द ने अद्वैतवेदान्त पर अत्यन्त सरसशैली में - वेदान्तसार नामक प्रकरणग्रंथ लिखा। इनका समय १६ वीं शताब्दी का पूर्वार्ध माना जाता है। वेदान्तसार सम्पूर्ण वेदान्त दर्शन का परिचायक ग्रंथ है। इसके अन्तर्गत सरस शैली में वेदान्त दर्शन को प्रस्तुत किया गया है।

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                           ।।मंगलाचरण‌‌।।               

वेदान्तसार के मंगलाचरण में ब्रह्म की वन्दना की गयी है। जैंसे कि -

अखण्डं सच्चिदानंदमावाङ्मनसगोचरम्।

आत्मानमखिलाधारमाश्रयेभीष्टसिद्धये।।


इस मंगलाचरण में आत्मा के लिए चार विशेषण प्रस्तुत किये गये हैं।

(१) अखण्ड  (२) सच्चिदानंद  (३) अवाङ्मनसगोचरम्  (४) अखिलाधार


अनुबन्ध क्या है? What is Anubandha?

अनु+बन्ध = अर्थात् जिसके द्वारा हम कोई नियम बनाते हैं। वेदान्तदर्शन में ४ चार अनुबन्ध हैं

  1. अधिकारी
  2. विषय
  3. संबन्ध
  4. प्रयोजन


अनुबन्ध अर्थात् सर्वप्रथम वेदान्तशास्त्र में प्रवेश करने से पूर्व हमें इन चार बातों को समझना है। 

क्या हम वेदान्त पढने के अधिकारी हैं?

वेदान्त का विषय क्या है?

वेदान्त का सम्बन्ध किससे है?

इसका प्रयोजन क्या है?


ये चार अनुबन्ध हैं ।

"तत्रानुबन्धो नामाधिकारि विषय सम्बन्धप्रयोजनानि।"


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अब हम थोडा इन चारों अनुबन्ध के बारें में चर्चा कर लेते हैं।

अधिकारीअधिकारी अर्थात् वेदान्तशास्त्र को पढने का अधिकारी कौन है? तो कहा है कि - जिसने सभी वेद वेदांगो का विधिपूर्वक अध्ययन कर लिया हो एवं समस्त काम्यादि कर्मों का परित्याग कर दिया हो था जिसका अन्तः करण शुद्ध हो गया है। वही इस वेदान्तशास्त्र को पढने का अधिकारी है।



विषय वेदान्तशास्त्र का विषय है- जीव और ब्रह्म की एकता चैतन्यरूप प्रमेय। "विषयो जीवब्रह्मैक्यं शुद्धचैतन्यं प्रमेयम्।"


सम्बन्धजीव और ब्रह्म का उनके प्रतिपादक उपनिषदों के साथ जो बोध्यबोधक भाव है। उसी का नाम सम्बन्ध है।

सम्बन्धस्तु तदैक्यप्रमेयस्य तत्प्रतिपादकोपनिषत्प्रमाणस्य चबोध्यबोधलभावलक्षणः। (Vedanta Sara book)


प्रयोजनजीव और ब्रह्म के विषय में जो अज्ञान है। उसकी निवृत्ति करना एवं आत्मस्वरूप का ज्ञान हो जाए ! यही वेदान्तशास्त्र का प्रयोजन है।

" प्रयोजनं तु तदैक्यप्रमेयगताज्ञाननिवृत्तिः स्वस्वरूपानन्दावाप्तिश्च।"

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साधनचतुष्टय क्या है? What is sadhana?

वेदान्तशास्त्र में प्रवेश करने के लिए अधिकारी होना जरूरी है। और अधिकारी बनने के लिए वेदान्तशास्त्र के चार साधनों से युक्त होना आवश्यक है। वो चार साधन क्या हैं - 

ये चार साधन हैं

  1. नित्यानित्यवस्तु विवेक
  2. इहामुत्रार्थ फलभोगविराग
  3. शमादि षट्कसम्पत्ति
  4. मुमुक्षुत्व


नित्यानित्यवस्तु विवेक ब्रह्म नित्य है उसके अतिरिक्त सम्पूर्ण जगत् अनित्य है । इस प्रकार नित्य और अनित्य वस्तु का ज्ञान हो जाना ही नित्यानित्यवस्तुविवेक हैै।


इहामुत्रार्थफलभोगविरागइस संसार में था परलोक में समस्त भोग विलास आदि इच्छाओं से विरक्ति हो जाना । इसी को दूसरे शब्दों में कहें तो - वैराग्य हो जाना अनित्य वस्तुओं से। विषयभोगों में फल की इच्छा ही खतम हो जाना। इह अमुत्र फलभोग विरागः।


शमादिषट्कसम्पत्तिः ➡ शमादि छः ६ सम्पत्ति - 

  1. शम 
  2. दम
  3. उपरति
  4. तितिक्षा 
  5. समाधान
  6. श्रद्धा

ये उपरोक्त छः शमादि हैं ।


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शमअर्थात् श्रवण , मनन , निधिध्यासन आदि के अतिरिक्त अन्य सांसारिक विषयों से मन का हट जाना ही शम कहलाता है।


दमबाह्य इन्द्रियों को सांसारिक विषयों से हटा लेना ही दम कहलाता है।


उपरतिअर्थात एक बार मन के हट जाने के बाद पुनः मन का उन विषयों में न जाना दूसरे शब्दों में कहें तो - सांसारिक विषयों का विधिपूर्वक परित्याग कर देना ही उपरति है।


तितिक्षा ➡ शीत-उष्ण , मान-अपमान,जय-पराजय आदि द्वन्दों को सहन करना ही तितिक्षा कहलाती है।

"शीतोष्णादिद्वन्द्वसहिष्णुता तितिक्षा।"


समाधानवश में किए हुए मन का सही विषयों में समाधिपूर्वक चिन्तन ही समाधान कहलाता है।


श्रद्धा गुरुदेव के द्वारा बताए गये वेदान्त वचनों म विश्वास होना ही श्रद्धा कहा गया है।

        "गुरूपदिष्टवेदान्तवाक्येषु विश्वासःश्रद्धा‌।"


मुमुक्षुत्वसमस्त संसार से तथा अज्ञान से विरक्ति हो जाने के बाद ब्रह्मानन्द की प्राप्ति करना ही मुमुक्षुत्व कहलाता है।

                      "मुमुक्षुत्वं मोक्षेच्छा।"


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                            🔸🔹🔸

अध्यारोप क्या है? What is Adhyaropa?

अधि+आरोप = अध्यारोप‌। अर्थात् किस में कुछ आरोप कर देना। जैंसे कि वेदान्तशास्त्र में बताया गया है कि - 


किसी रस्सी को देखकर उसमें सर्प का आरोप कर देना। वस्तु में अवस्तु का आरोप कर देना ही अध्यारोप है।

                  "वस्तुन्यवस्त्वारोपः अध्यारोपः।"

"When the vedantins speak of the origin of the world, for instance, they don't believe its origin to be true. This mode of expression they call 'False Imputation'. ➡ Dr.Hall


इस प्रकार हमनें यंहा वेदान्तशास्त्र के महत्वपूर्ण तथ्य आपके सामने उपस्थित किये।


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उपसंहार Conclusion:

वेदान्तशास्त्र का प्रारंभिक विषय हमने आपके सामने प्रस्तुत किया।UGC NET Sanskrit 2021 पाठ्यक्रम के अनुसार उपरोक्त वेदान्तसार का विषय अत्यन्त उपयोगी है। 

हमें उम्मीद है कि आपको यह पसंद आया होगा। हमें अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए नीचे कमेंट करें। धन्यवादः Thanking




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6 Comments

  1. सुंदर अतिसुंदर

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  2. Very nice online test for UGC net preparation

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  3. 2021के syllabus के आधार पर सभी बिन्दु के उपर व्याख्या नहीं की गई हैं

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