भगवान शिव की मृत्यु कैसे हुई❓जानिए रहस्य व सच्चाई | 𝐁𝐡𝐚𝐠𝐰𝐚𝐧 𝐒𝐡𝐢𝐯 𝐊𝐢 𝐌𝐫𝐢𝐭𝐲𝐮 𝐊𝐚𝐢𝐬𝐞 𝐇𝐮𝐢

हिंदू धर्म में सृष्टि के आरंभ में त्रिदेव के बारे में विशेष बात कही गई है। ब्रह्मा विष्णु महेश यह तीन त्रिदेव कहे जाते हैं। महेश यानी भगवान शिव प्रकृति में संहार कर्ता (Destroyer) के रूप में जाने जाते हैं.

भगवान शिव के भक्त हो या अन्य कोई भी सनातनी उसके मन में इस प्रकार का सवाल कभी ना कभी जरूर हुआ होगा कि भगवान शिव की मृत्यु कैसे हुई अथवा शिव से पहले कौन था, भगवान शिव की उत्पत्ति कैसे हुई, क्या सच में भगवान शिव की मृत्यु हुई, इस प्रकार के सवाल होना आम बात है. 

क्योंकि हमारा मन कल्पनाशील प्रवृत्ति वाला है. जहां तक भी हमारा मन जा सकता है. वहां तक सृष्टि है यदि आपके मन में यह सवाल हुआ है कि भगवान शिव की मृत्यु कैसे हुई भगवान शिव की उत्पत्ति कैसे हुई तो इसका उत्तर जानने का आपका पूर्ण अधिकार है. 

यहां हम आपको पौराणिक कथाओं एवं प्रमाणों के आधार पर भगवान शंकर की मृत्यु से जुड़ी जानकारी दे रहे हैं. इसके अलावा आदियोगी महादेव (Adiyogi God Shiva) भगवान शिव से जुड़े कुछ रोचक रहस्य भी यहां बताये जा रहे हैं।

भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ?

सबसे पहले भगवान शिव की मृत्यु के बारे में जानने की बजाय आपको भगवान शिव के जन्म को समझ लेना चाहिए। इसी से आपको भगवान शिव की मृत्यु का भी रहस्य ज्ञात हो जाएगा। 

भगवान शंकर अर्थात भगवान शिव को अजन्मा कहा जाता है। विभिन्न पुराणों में एवं समस्त सनातन वांग्मय में भगवान शंकर आदि अविनाशी अजर, अमर, अनंतादि विशेषणों से युक्त बताए गए हैं। अनेकानेक योगियों ने भगवान शंकर को अपने योग के द्वारा जानने की कोशिश की तो उनको इसका पार नहीं मिला। 

शिव महापुराण में जब भगवान शंकर और पार्वती के परिणय यानि Shiv-Parvati Marriage की कथा आती है तो वहां पर भी विवाह के समय भगवान शंकर के गोत्र, जाति एवं जन्म से संबंधित सवाल खड़े होते हैं। 

भरी सभा में ब्रह्मा जी एवं भगवान विष्णु तथा समस्त देवों के होते हुए भी कोई भगवान शंकर के जन्म, गोत्र, जाति आदि के विषय में जानने के लिए सक्षम नहीं था। तुलसीदास ने सुंदर शब्दों में रामचरितमानस में भगवान शंकर की स्तुति करते हुए कहा है।

नमामि शमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मस्वरूपम्।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेsहम्।।


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यह तुलसीदास रचित रुद्राष्टक स्तोत्र का पहला श्लोक है। इसमें उन्होंने भगवान शंकर के उस अगम, अगोचर रूप का वर्णन किया है जिससे उनके जन्म का निश्चय हो जाता है। भगवान शंकर निर्वाणरूपं बताए गए हैं। 

वह विभु अर्थात सर्वत्र विद्यमान रहने वाले ब्रह्म स्वरूप है। उनका जन्म नहीं है। वह समस्त गुणों से अतीत हैं। इसीलिए उनको त्रिगुणातीत कहा जाता है और सभी विकल्पों से परे हैं। 

इस प्रकार से भगवान शंकर का जन्म कैसे हुआ, भगवान शंकर का जन्म कब हुआ, भगवान शंकर की उत्पत्ति कब हुई, भगवान शिव को किसने उत्पन्न किया- इत्यादि सभी सवालों का जवाब इन शास्त्र प्रमाणों से स्पष्ट हो जाता है। 

अब हम अपने मुख्य विषय पर आते हैं कि भगवान शिव की मृत्यु कैसे हुई, भगवान शिव की मृत्यु कब हुई इत्यादि भगवान शिव की मृत्यु से जुड़े रहस्यों को जानने के लिए हम आपको शास्त्र प्रमाण की ओर ले चलते हैं।


भगवान शिव की मृत्यु कैसे हुई 

एक शब्द में कहें तो भगवान शिव की मृत्यु हुई ही नहीं है। मनुस्मृति के अनुसार हर युग में इंद्र आदि सभी देवता मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं लेकिन त्रिदेव यानी ब्रह्मा विष्णु एवं भगवान शिव मृत्यु रहित होते हैं। इनको सृष्टि का आदिदेव भी कहा जाता है। 

इस दृष्टि से देखा जाए तो भगवान शिव की कभी भी मृत्यु नहीं हुई। फिर भी हम भगवान शिव की मृत्यु से जुड़े कुछ रहस्य आपको जरूर बताना चाहेंगे।


देवी भागवत पुराण में एवं श्रीमद्भागवत पुराण में भी भगवान शंकर की मृत्यु के विषय में कुछ वर्णन मिल जाता है। 

देवी भागवत के अनुसार जब भगवान शंकर को अपने अनादि रूप के कारण अहंकार हो गया था तो आदिशक्ति- धूमावती के रूप में उनको निगल गई थी. यह घटना भगवान शंकर की मृत्यु के रूप में भी समझी जा सकती है क्योंकि तब आदि शक्ति मां जगदंबा ने उनको अपने मुंह के अंदर ही समाहित कर लिया था।

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शिव से पहले कौन था?

जब हम भगवान शिव से पहले की स्थिति को जानने की कोशिश करते हैं तो विभिन्न शास्त्रों में अलग-अलग मत दिए गए हैं। शिव पुराण एवं लिंग पुराण के अनुसार भगवान शंकर ही सृष्टि के आदि ईश्वर हैं। उनसे पहले कोई नहीं था। 

इसके अलावा कुछ पुराणों में एवं सनातन शास्त्रों में शिव से पहले की स्थिति को भी दर्शाया गया है। 

वराह पुराण के अनुसार भगवान शिव से पहले आदि शेष यानी भगवान नारायण थे। इसके अलावा नारद भैरवी संहिता में शिव से पहले एक शेषनाग की स्थिति का वर्णन किया गया है।


भगवान शिव की उम्र कितनी है?

भगवान शिव की उम्र को संख्या में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि भगवान शंकर का जन्म ही नहीं हुआ तो किस आधार पर उनकी उम्र की गणना की जा सकती है? उसका कोई आधार ही नहीं है। 

वराहमिहिर, जो की एक प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य हुए. उन्होंने भगवान शिव की उम्र को तत्कालीन समय में 01. 01. 01. 00 के रूप में अभिव्यक्त किया। इसके अलावा 

काल शास्त्र के ज्ञाताओं ने भगवान शंकर की उम्र के विषय में संख्या की जानकारी भी देने की कोशिश की है। हालांकि इसमें मतभेद एवं विवाद हो सकता है।


शिव की स्थापना किसने की थी?

जब भगवान शंकर की स्थापना से जुड़ा सवाल मन में होता है तो इसके विषय में मत मतान्तर हैं। 

त्रेता युग की घटना के अनुसार Bhagwan Shiv की स्थापना महा पंडित, प्रसिद्ध ज्योतिषी, संगीत शास्त्र के प्रकांड विद्वान, भगवान राम के शत्रु रावण ने की थी। रावण भगवान शंकर का बहुत बड़ा भक्त था। रावण ने शिव की स्थापना लिंग रूप में भी की थी।


शंकर भगवान किस जाति के थे

आमतौर पर शंकर भगवान अर्थात भगवान शिव की जाति से जुड़ा सवाल भी विवादास्पद हो सकता है क्योंकि भगवान शंकर की वैसे तो कोई जाति नहीं है।

तथापि शास्त्रों में एवं सनातन ग्रंथों में उनको समस्त जाति के अंतर्गत रखा जाता है। आजकल के समाज में इस जाति को आप विरक्त, बैरागी, अघोरी, योगी, निर्मोही आदि लोगों के रूप में समझ सकते हैं।

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