UGC NET Sanskrit Notes | Vaidik Sahitya- वैदिक साहित्य नोट्स | वैदिक देवता - Vedic Devās

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नमांसि भूयांसि! 😍 प्यारे मित्रों, स्वागत है आपका अपनी इस SanskritExam. Com वेबसाइट में। जैंसे कि आपको पता होगा कि  हम अपनी इस वेबसाइट पर प्रतिदिन संस्कृत की विभिन्न प्रतियोगिताओं का कुछ न कुछ नया विषय लाते रहते हैं। 

उसी क्रम में आज हम आपके सामने - UGC net Sanskrit वैदिक साहित्य नोट्स प्रस्तुत रहे हैं।



प्रस्तावना   ➡    वैदिक साहित्य के अन्तर्गत "वैदिक देवता" यह विषय अत्यन्त ही आवश्यक है। विशेषकर- UGC NET Sanskrit की परीक्षा के लिए एवं न केवल UGC NET Sanskrit के लिए बल्कि अन्य सभी परीक्षाओं में यंहा से विभिन्न प्रश्न प्रायः पूछे जाते हैं।

तो आइये ! हमारे साथ अपनी विभिन्न प्रतियोगिताओं की तैयारी कीजिये। चूंकि, वैदिक देवताओं के विषय में पुस्तकों में अच्छे ढंग से सामग्री नहीं मिल पाती,परन्तु हम आपके लिए यंहा पर विस्तृत रूप से वैदिक देवताओं का विवेचन कर रहे हैं।
 

वैदिक देवताओं का विस्तृत अध्ययन- UGC NET Sanskrit


सबसे पहले हम वैदिक काल के देवताओं का वर्गीकरण समझते हैं।

विभाजन ➡ वैदिक देवताओं को तीन भागों में बांटा गया है।

१) पृथ्वी स्थानीय
२) अन्तरिक्षस्थानीय
३) द्युस्थानीय

                       पृथ्वी स्थानीय देवता 
अग्नि        पृथ्वी       उषा       सोम बृहस्पति

                    अन्तरिक्ष स्थानीय देवता
मरुत्        पर्जन्य       वायु      इन्द्र    रुद्र

                        द्यु- स्थानीय देवता
सूर्य          वरुण          मित्र      विष्णु     
 सवितृ       अश्विनौ

नोट:-  वेदों में कुल 33 देवता हैं , जो इस प्रकार विभाजित हैं।

पृथ्वी स्थानीय -      ११
अन्तरिक्ष स्थानीय - ११
द्युस्थानीय -           ११

तथ्य:-  शतपथ ब्राह्मण के अनुसार ३३ देवताओं का विभाग इस प्रकार है।

  अष्ट वसु
११ एकादश रुद्र
१२ द्वादश आदित्य
   एक इन्द्र
   एक प्रजापति

अब हम यंहा प्रत्येक देवता से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य बताने जा रहे हैं।




अग्नि देवता स्वरूप - Agni Deva 

अग्नि देवता पृथ्वी स्थानीय है।अथर्ववेद में अग्नि के चार भेद बताए गये - (१) - भौतिक  (२) - जलीय अग्नि  (३)  सूर्य अग्नि  (४) - विद्युत अग्नि 

नोट:-  अन्य वेदों में अग्नि के तीन भेद हैं

गार्हपत्य अग्नि
आहवनीय अग्नि
दक्षिणाग्नि

अग्नि का पिता - द्यौ तथा कंही-कंही त्वष्टा ऋषि को भी माना जाता है।

अग्नि को पृथिवी एवं अमृत की नाभि भी कहा जाता है।

                    ।। अग्नि शब्द-उत्पत्ति ।।

अग्रणीर्भवति‌।
अग्रं यज्ञेषु प्रणीयते।
अंगं नयति सन्नममानः।
अक्नोपन्नो भवति।

                  ।।  अग्नि के अन्य नाम  ‌‌।।

पुरोहित, होता, कविक्रतुः, सप्तरश्मि, त्रिमूर्धा, मन्दजिह्व, विश्ववेद, सहस्त्राक्ष, घृतपृष्ठ, घृतलोम, चित्रश्रवस्तम्, दूत, विश्ववेद, विश्पति, रत्नधातम,दमूनस् ।





इन्द्र देवता - परिचय (Indra Deva)

इन्द्र अन्तरिक्ष स्थानीय देवता है।वेदों में सर्वाधिक स्तुति - इन्द्र की की गयी है। 250 सूक्तों में।
इन्द्र सूक्त - 2/12 के ऋषि गृत्समद हैं ।


                  ।।  इन्द्र शब्द - उत्पत्ति ।।

इरां ददाति।
इरां दृणाति।
इरां दधाति।
इरां दारयते।
इन्द्रवे द्रवति।
इन्दौ रमत‌।
इन्द्रच्छत्रूणां दारयिता।

                    ।।  इन्द्र के अन्य नाम ।।

सुशिप्र, मरुत्सखा, हिरश्केश, हरिश्मश्रु, हिरण्यबाहु, पुरुहूत, चित्रभानु, वृषा, धनंजय, 


                     ।।  इन्द्र के प्रमुख मंत्र  ।।

यः सूर्यं यो उषसं जजान।
यो जात एव प्रथमो मनस्वान्।
यः शस्वतो मह्येनो दधानान्।
येनेमा विश्वा च्यवना कृतानि।
यः रध्रस्य चोदिता।

                    ।।  इन्द्र से सम्बन्धित तथ्य ।।

इन्द्र को सुशिप्र भी कहा जाता है।इन्होंने शम्बर नामक असुर को मारा था। इनका पेय पदार्थ सोम है।




वरुण देवता परिचय (Varun Deva)

वरुण द्युस्थानीय देवता है।वरुण की स्तुति १२ सूक्तों में की गयी है।
वरुणसूक्त (१/२५) के ऋषि - शुनः शेप हैं।

                       ।। वरुण शब्द व्युत्पत्ति ।।

वरुणो वृणोतीति सतः।

                      ।।  वरुण के अन्य नाम ‌‌।।

असुर, क्षत्रिय, धृतव्रत, ऋतगोपा, अमृतस्यगोपा, उरूशंश, स्वराट्, दूतदक्ष, मायावी।

                       ।। वरुण के प्रमुख मंत्र ।।

तदित्समानमाशाते वेनन्ता न प्रयुच्छातः।
वेद वातस्य वर्तनिमुरोर्ऋष्वस्य बृहतः।
उत यो मानुष्वेसा यशश्चक्रे असाम्या।

                    ‌।।  वरुण से सम्बंधित तथ्य ।।
 
वरुण के नेत्र सूर्य हैं ।वरुण के नियम कठिन होने के कारण इन्हें "धृतव्रत" भी कहा जाता है।





सवितृ देवता परिचय (Savitri Deva)

सवितृ एक द्युस्थानीय देवता है।इनकी स्तुति - ११ सूक्तों में की गयी।

                       ।। सवितृ शब्द उत्पत्ति ।।

सविता सर्वस्य प्रसविता। 
अन्दकारः मध्यादागच्छन् प्रकाशः सवितेति कथ्यते।

                    ।। सवितृ के अन्य नाम ।।

हिरण्यपाणि, हिरण्याक्ष, हिरण्यस्तूप, स्वर्णपाद, स्वर्णनेत्र, स्वर्णजिह्व, सुनीथ, सुपर्ण, सुमृतलीक, दमूना।

                    ।। सवितृ के प्रमुख मंत्र ‌।।

ह्वयाम्यग्निं प्रथमं स्वस्तये।
तिस्रो द्यावः सवितुर्द्वाः उपस्थाँ।
अष्टौ व्यख्यत्ककुभः पृथिव्यास्त्री।
याति देवः प्रवता यात्युद्धता याति।


                 ।। सवितृ से सम्बंधित तथ्य ।।

सवितृ को एक प्रेरक तथा सभी देवताओं का प्रकाशक माना जाता है।सवितृ एक स्वर्णिम देवता हैं। सवितृ को लौह जबड़ों वाला देवता भी कहा जाता है।




विष्णु देवता परिचय (Vishnu Deva)

विष्णु एक द्यु स्थानीय देवता है। विष्णु की स्तुति - ५ सूक्तों में की गयी है।विष्णु सूक्त (१/१५४) के ऋषि दीर्धतमा हैं।

                     ।। विष्णु शब्द उत्पत्ति ।।

विष्णातेर्विशतेर्वा स्याद् वेवेष्टेर्व्याप्तिकर्मणः।

                     ।। विष्णु के अन्य नाम ।।

उरुगाय, उरुक्रम, कुचर, वृष्ण, गिरिष्ठा, गिरिक्षित, त्रिविक्रम, विक्रम, भीम आदि‌।

                      ।। विष्णु के प्रमुख मंत्र ।।

यत्र गावो भूरिशृंगा अयासः।
यस्य त्री पूर्णा मधुना।
यः पार्थिवानि विममे रजांसि।

                     ।। विष्णु से सम्बंधित तथ्य ।।

वेदों में इन्द्र को विष्णु का मित्र कहा गया। विष्णु को गर्भ का रक्षक भी माना वेदों में इन्द्र को विष्णु का मित्र कहा गया। विष्णु को गर्भ का रक्षक भी माना जाता है। विष्णु को उपेन्द्र भी कहा जाता है। इनका वाहन गरूड़ है।




रुद्र देवता - परिचय (Rudra Deva)

रुद्र एक अन्तरिक्ष स्थानीय देवता है। रुद्र की स्तुति ३ सूक्तों में की गयी है। रुद्र सूक्त (२-३३) के ऋषि - गृत्समद हैं ।

              ।। रुद्र शब्द उत्पत्ति ।।

रौतीति सतो रोरूयमाणो द्रवतीति वा रोदयतेर्वा।

                        ।। रुद्र के अन्य नाम ‌‌।।

रक्तवर्णी, मृण्याकु, नीललोहित, त्र्यंबक, शर्व, पशुपति, कृत्तिवास, भव, मीलवान, तव्यान्, भिषक्तम्, वंकु, जलासभेषज, शिव आदि।

                        ।। रुद्र के प्रमुख मंत्र ‌‌।।

श्रेष्ठो जातस्य रुद्र श्रियांसि।
मा त्वा रुद्र चुक्रुधामा नमोभिः।
आ ते पितर्मरुतां सम्नमेतु।
अहन्विभर्षि सायकानि धन्व।
परि णो हेति रुद्रस्य वृज्या।

                        ।। रुद्र से सम्बंधित तथ्य ।।

वाजसनेयी संहिता में रुद्र को रक्तवर्णी कहा गया है। इनके वस्त्र चर्म के होते हैं। रुद्र को देवताओं का कुशल वैद्य भी माना जाता है।




वैदिक देवता - Vedic Devās (UGC NET Sanskrit)

आज के इस लेख में हमने कुछ महत्वपूर्ण वैदिक देवताओं के परीक्षा उपयोगी तथ्य प्रस्तुत किये हैं । हमें‌ कमेंट करके बताएं कि आपको यह पोस्ट कैंसी लगी‌। वैदिक देवता सभी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं‌।

यंहा से विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में बहुत सारे प्रश्न पूछे जाते हैं। वैदिक देवताओं के सूक्तों से तो पिछली कयी प्रतियोगी परीक्षाओं में बहुत सारे प्रश्न पूछे गये हैं। अतः आपसे निवेदन है कि उपरोक्त वैदिक देवता के लेख को अच्छे ढंग से अवश्य पढें। धन्यवादः।




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