प्यारे मित्रों, स्वागत है आप सभी का आपकी अपनी इस वेबसाइट में। मित्रों, आज हम आपके लिए UGC NET SANSKRIT 25 CODE के अन्तर्गत दशमयूनिट में कौटिल्य अर्थशास्त्र KAUTILYA ARTHASHASTRA की चर्चा करने जा रहे हैं। साथ ही कौटिल्य अर्थशास्त्र PDF (Arthashastra PDF) भी आपको यंहा उपलब्ध कराएंगे, ताकि आप कौटिल्य अर्थशास्त्र का विस्तार से अध्ययन कर सकें। मित्रों, आपने यत्र तत्र सर्वत्र अर्थशास्त्र का नाम जरूर सुना होगा। भले ही यह अर्थशास्त्र अंग्रेजी में ECONOMY शब्द के रूप में प्रयोग किया जाता है। लेकिन कौटिल्य का अर्थशास्त्र अंग्रेजी के ECONOMY से थोडा अलग सा है। जी हाँ। आज हम चाणक्य का अर्थशास्त्र इस विषय की चर्चा करने जा रहे हैं।
इस लेख में
- अर्थशास्त्र के लेखक
- कौटिल्य का अर्थशास्त्र
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र का समय
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र का स्वरूप
- कौटिल्य का अर्थशास्त्र- वर्ण्य विषय
- अन्य अर्थशास्त्र ग्रंथ
- कौटिल्य अर्थशास्त्र PDF (Arthashastra PDF)
- कौटिल्य अर्थशास्त्र Book (Arthashastra Book)
मित्रों, आज हम उपरोक्त सभी विषयों की
चर्चा करेंगे। सबसे पहले कौटिल्य अर्थशास्त्र, जो कि कौटिल्य अर्थात् चाणक्य के
द्वारा लिखा गया। यह ग्रंथ संस्कृत में सूत्रात्मक शैली में लिखा गया था। कहा जाता
है कि कौटिल्य अर्थशास्त्र में कुल 6000 सूत्र हैं।
कौटिल्य अर्थशास्त्र- कौटिल्य का परिचय
अर्थशास्त्र के रचनाकार के विषय में यद्यपि विद्वानों का एक वर्ग इसे कौटिल्य से भिन्न भी कहता है। तथापि अधिक संख्या में विद्वान लोग अर्थशास्त्र को कौटिल्य अर्थात् चाणक्य के द्वारा ही रचित बताते हैं। ये कौटिल्य मूल रूप से लोकसाहित्य में चाणक्य के रूप में बहुत प्रसिद्ध हैं।
कौटिल्य का समय विद्वान लोग लगभग 300
ई.पू. के आसपास का मानते हैं। कहा जाता है कि कौटिल्य अर्थात् चाणक्य चन्द्रगुप्त
मौर्य के महामंत्री थे। साथ ही कौटिल्य तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य भी थे।
कौटिल्य का दूसरा नाम चाणक्य एवं विष्णुगुप्त भी है। कौटिल्य का जन्म तक्षशिला में
हुआ था तथा इनकी मृत्यु पटना में हुई थी।
अर्थशास्त्र के लेखक |
कौटिल्य |
कौटिल्य का समय |
300 ई.पू. लगभग |
जन्मस्थान |
तक्षशिला (पाकिस्तान) |
मृत्युस्थान |
पटना (बिहार) |
कौटिल्य के अन्य नाम |
विष्णुगुप्त, चाणक्य |
चन्द्रगुप्त मौर्य के |
महामंत्री |
कौटिल्य का अर्थशास्त्र- राजनीतिक,
सामाजिक तथा नैतिक विषयों से परिपूर्ण है। इसकी रचना लगभग 300 ई.पू. के आसपास मानी
जाती है। कौटिल्य ने इस अर्थशास्त्र ग्रंथ को उपदेशात्मक शैली में लिखा है।
कौटिल्य ने इस ग्रंथ के द्वारा विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक तथा नैतिक उपदेश दिए
हैं। अपने ही अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने अन्तिम अधिकरण में लिखा है।
येन शास्त्रं च शस्त्रं च नन्दराजगता च
भूः।
अमर्षेणोद्धृतान्याशु तेन शास्त्रमिदं
कृतम्।। (15 वां अधिकरण)
अर्थात् जिसने अन्याय से क्रोधित होकर
नन्दवंश के हाथ मे गया हुआ- शस्त्र, शास्त्र एवं समस्त साम्राज्य वापिस लिया तथा
उसका उद्धार किया, उसने इस शास्त्र की रचना की।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र का समय
कौटिल्य
के अर्थशास्त्र के समय को लेकर भी प्रायः एक निश्चित निष्कर्ष नहीं मिल पाता है,
तथापि विभिन्न प्रामाणिक आधारों पर कौटिल्य अर्थशास्त्र का समय 300 ई. पू. के आसपास
युक्तियुक्त प्रतीत होता है। कौटिल्य अर्थशास्त्र के समय को लेकर विभिन्न प्रमाणों
का उल्लेख किया जाता है। जैंसे कि कामन्दकीय नीतिसार जो कि कामन्दक के द्वारा लगभग
400 ई. के आसपास लिखा गया था। कामन्दक ने अपने नीतिसार में कौटिल्य को अपना गुरु
बताया है। अतः इस आधार पर भी यह कहा जा सकता है कि कौटिल्य अर्थशास्त्र की रचना
कामन्दक से पूर्व की है।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र का स्वरूप
कौटिल्य अर्थशास्त्र के स्वरूप के बारे में स्वंयं कौटिल्य अपने ग्रंथ में लिखते हैं- शास्त्रसमुद्देशः पंचदशाधिकरणानि सपंचाशदध्यायशतं साशीतिप्रकरणशतं षट्श्लोकसहस्त्राणीति।।
अर्थात् इस अर्थशास्त्र नामक ग्रंथ में कुल 15 अधिकरण हैं। 150 अध्याय तथा 180 प्रकरण हैं। इसी के साथ कुल 6000 श्लोक हैं। इस प्रकार अर्थशास्त्र के स्वरूप के विषय में कौटिल्य स्वयं ऐसा कहते हैं।
कौटिल्य
अर्थशास्त्र के 15 अधिकरणों को याद करने के लिए- ट्रिकी श्लोक
विनयाध्यक्षधर्मस्थं
कण्टकं योगमण्डले।
षाड्गुण्यं
व्यसनं चैवाभियास्यत्कर्म एव च।।1।।
सांग्रामिकं
संघवृत्तम् आबलं दुर्गलम्भनम्।
तत्रौपनिषदं
तंत्रयुक्तिः कौटिल्यसंग्रहे।।2।।
उपरोक्त
दो श्लोकों के माध्यम से परीक्षादृष्टि के लिए आप कौटिल्य अर्थशास्त्र के 15
अधिकरणों को क्रमानुसार याद रख सकते हैं। UGC NET SANSKRIT 25 CODE PREVIOUS YEAR QUESTION
PAPERS में इस प्रकार के
बहुत प्रश्न पूछे गये हैं। यदि आप UGC NET SANSKRIT PREVIOUS YEAR QUESTION PAPERS देखना चाहते हैं तो हमारी इस वेबसाइट के
होमपेज में जाएँ।
मित्रों,
अर्थशास्त्र के ये पंद्रह अधिकरण निम्न हैं।
1.विनयाधिकारिक |
6.मण्डलयोनि |
11.संघवृत्त |
2.अध्यक्षप्रचार |
7.षाड्गुण्य |
12.आबलीयस |
3.धर्मस्थीयम् |
8.व्यसनाधिकरण |
13.दुर्गलम्भनम् |
4.कण्टकशोधन |
9.अभियास्यत्कर्म |
14.औपनिषदिक |
5.योगवृत्त |
10.सांग्रामिक |
15.तंत्रयुक्तिः |
इस
प्रकार से कौटिल्य अर्थशास्त्र में कुल 15 अधिकरण हैं। UGC NET SANSKRIT SYLLABUS
2021 25 CODE के
पाठ्यक्रमानुसार अर्थशास्त्र का विनयाधिकारिक लगा हुआ है। यदि आपके पास सिलेबस न
हो तो आप हमारी इस वेबसाइट के मेनूबार में जाकर अभी डाउनलोड कर सकते हैं।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र- वर्ण्य विषय
कौटिल्य
अर्थशास्त्र में विभिन्न राजव्यवस्था, वाणिज्य-व्यापार, कृषि, सामाजिक तथा नैतिक
विषयों की चर्चा की गयी है। यह ग्रंथ विशेष रूप से राजाओं के लिए अभिप्रेत है।
राजा किस प्रकार अपनी प्रजा की रक्षा करे, किस प्रकार साम्राज्य को सुरक्षित रखे
इत्यादि विषयों पर मुख्य रूप से केन्द्रित है। वर्तमान में यह अर्थशास्त्र शब्द
कदाचित् ECONOMY
के रूप में प्रयोग
किया जाता है, लेकिन अर्थशास्त्र केवल ECONOMY तक ही सीमित नहीं है। अर्थशास्त्र में विभिन्न विषयों की चर्चा की
जाती है। जैंसा कि कौटिल्य अर्थशास्त्र में है। कौटिल्य ने आजकल के ECONOMY शब्द के लिए वार्ता का प्रयोग किया है।
कौटिल्य के मत में कुल चार विद्याएँ हैं, जिनमें एक वार्ता भी है। वार्ता अर्थात्-
अर्थानर्थौ। वार्ता का सम्बन्ध ही अर्थ, व्यापार आदि से है, जो कि आज अंग्रेजी में
ECONOMY के रूप में प्रयोग किया जाता है। कौटिल्य
स्वयं अपने अर्थशास्त्र में कहते हैं-
पृथिव्या
लाभे पालने च यावन्त्यर्थशास्त्राणि पूर्वाचार्यै प्रस्थापितानि प्रायशः तानि
संहृत्य एकम् इदम् अर्थशास्त्रं कृतम्। (1, अधिकरण)
इस
प्रकार कौटिल्य के इस वचन से यह भी स्पष्ट होता है कि अर्थशास्त्र पृथिवी के लाभ व
पालन के लिए लिखा जाता था। कौटिल्य अपने अर्थशास्त्र के अन्तिम अधिकरण में अर्थ
शब्द के विषय में कहते हैं-
मनुष्याणां
वृत्तिः अर्थः। मनुष्यवती भूमिः इत्यर्थः। तस्याः पृथिव्याः लाभपालनोपायः
शास्त्रम् अर्थशास्त्रम्। (अधिकरण-15)
इस
प्रकार अर्थशास्त्र के विषय में कहा जा सकता है कि कौटिल्य अर्थशास्त्र में न केवल
अर्थसम्बन्धित बाते ही हैं अपितु राजनीतिक, सामाजिक आदि विभिन्न प्रकार के विषयों
का उल्लेख भी मिलता है।
अन्य अर्थशास्त्र ग्रंथ
कौटिल्य अपने अर्थशास्त्र की शुरुआत में
ही यह स्पष्ट कर देते हैं कि इससे पूर्व भी बहुत सारे अर्थशास्त्र ग्रंथ लिखे गये।
कौटिल्य ने स्वयं कुछ अर्थशास्त्रों का उल्लेख अपने ग्रंथ में भी किया है। जैंसे
कि मानव, बार्हस्पत्य, शुक्राचार्य आदि।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कुछ अन्य
अर्थशास्त्रकारों का नाम
मानव |
विशालाक्ष |
बार्हस्पत्य |
पराशर |
औशनस (शुक्राचार्य) |
पिशुन (नारद) |
भारद्वाज |
कौणदन्त (भीष्म) |
वाताव्याधि |
बाहुदन्तीपुत्र (इन्द्र) |
इन उपरोक्त सभी अर्थशास्त्रकारों का नाम कौटिल्य ने स्वयं अपने ग्रंथ- कौटिल्य अर्थशास्त्र में किया है। शुक्राचार्य की शुक्रनीति भी अर्थशास्त्र ग्रंथों मे अत्यधिक प्रसिद्ध है। कौटिल्य ने अपने ग्रंथ के प्रारंभ में मंगलाचरण के रूप में शुक्र और बृहस्पति का ही स्मरण किया है। नमः शुक्रबृहस्पतिभ्याम्।।
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निष्कर्ष- कौटिल्य का अर्थशास्त्र सभी अर्थशास्त्र ग्रंथो का सारांशरूप है। जैंसा कि कौटिल्य ने भी कहा है। प्यारे मित्रों, UGC NET SANSKRIT 25 CODE के अन्तर्गत दशम यूनिट में अर्थशास्त्र का विशिष्ट अध्ययन रखा गया है। जिसमें कि अर्थशास्त्र के प्रथम अधिकरण का पूर्णविषय लगा है। यदि आपके पास UGC NET SANSKRIT SYLLABUS नहीं हो तो आप हमारी इस वेबसाइट के मेनूबार में जाकर अभी डाउनलोड कर सकते हैं। साथ ही यदि आप UGC NET SANSKRIT 25 CODE की तैयारी करना चाहते हैं तो आप हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। हमें उम्मीद है कि आज का विषय- कौटिल्य का अर्थशास्त्र आप अच्छे ढंग से समझ चुके होंगे।
FAQ
- अर्थशास्त्र के लेखक कौन हैं?
यद्यपि अर्थशास्त्र कौटिल्य से पूर्व में भी लिखे गये। लेकिन वर्तमान में अर्थशास्त्र के लेखक का श्रेय कौटिल्य को ही जाता है।
- कौटिल्य अर्थशास्त्र में कितने अधिकार हैं?
कौटिल्य अर्थशास्त्र में कुल 15 अधिकार अथवा अधिकरण हैं। 180 प्रकरण तथा 150 अध्याय हैं। कुल 6000 श्लोक हैं।
- चाणक्य को कौटिल्य क्यों कहा जाने लगा?
विशाखदत्त के मुद्राराक्षस में कौटिल्य के पिता का नाम चणक बताया गया है। चणक के पुत्र होने के कारण कौटिल्य का दूसरा नाम चाणक्य भी है।
- कौटिल्य ने कितने प्रकार के दण्ड का उल्लेख किया?
कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में मुख्यतः तीन प्रकार का दण्ड बताया है। 1. सुप्रणीत 2. दुष्प्रणीत 3. अप्रणीत। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में दण्ड को सभी विद्याओं का मूल बताया है।
- अर्थशास्त्र के कितने विभाग हैं?
मुख्यतः अर्थशास्त्र के पाँच विभाग होते हैं। 1. उपभोग 2. उत्पाद 3. वितरण 4. नियम 5. लोकवित्त।
- कौटिल्य कंहा का ब्राह्मण था?
कौटिल्य तक्षशिला का निवासी था। मूल रूप से वर्तमान में पाकिस्तान के अन्तर्गत रावलपिंडी में कौटिल्य की जीवनलीला शुरु हुई थी।
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र का क्या महत्त्व है?
अर्थशास्त्र बहुत बडा विज्ञान है। मुख्य रूप से अर्थशास्त्र सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक विषयों को समझने के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
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धन्यवादः
4 Comments
बहुत ही अच्छा लगा गुरूजी...एकदम् अच्छी तरह से समझ में आया ।
ReplyDeleteधन्यवादाः भवत्यै पूज्यायै
Deleteबहुत ही बढ़िया। ऐसी जानकारियों के बहुत बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुप्रणीत, दुष्प्रणीत, अप्रणीत दण्ड किस प्रकार होते हैं?
ReplyDeleteआपको यह लेख (पोस्ट) कैंसा लगा? हमें कमेंट के माध्यम से अवश्य बताएँ। SanskritExam. Com वेबसाइट शीघ्र ही आपके कमेंट का जवाब देगी। ❤